आदिवासी क्षेत्रों में स्थानीय बोली भाषा के जानकार लोगों को शिक्षक नियुक्त करने से ही शिक्षा एवं संस्कृति का विकास संभव

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जिवराखन लाल उसारे छत्तीसगढ़ ग्रामीण न्युज
राज्य योजना आयोग छत्तीसगढ़ जनजाति वर्ग के शिक्षा एवं संस्कृति के विकास के सदस्य श्रीमती कांति नाग द्वारा अनुसूचित जनजाति वर्ग के शिक्षा एवं संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन पर परिचर्चा का आयोजन अंतागढ़ ,जिला- कांकेर में गोंडी धर्म आचार्य शेर सिंह आंचला जी के मुख्य आतिथ्य, राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त स्थानीय विधायक श्री अनूप नाग जी सदस्य मुख्यमंत्री अधोसंरचना एवं उन्नयन विकास प्राधिकरण छत्तीसगढ़ शासन, आर एन ध्रुव प्रांताध्यक्ष अनुसूचित जनजाति शासकीय सेवक विकास संघ छत्तीसगढ़ के विशेष उपस्थिति में किया गया। परिचर्चा के प्रस्तावना भाषण रखते हुए श्रीमती कांति नाग ने कहा कि राज्य सरकार आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा एवं संस्कृति के विकास हेतु कृत संकल्पित है इस हेतु समाज के विद्वान बुद्धिजीवियों से विचार आमंत्रित कर सरकार को सौंपी जावेगी ।जिससे हम आदिवासी क्षेत्र में बेहतर ढंग से शिक्षा और संस्कृति का विकास में भागीदार हो सकें। इस अवसर पर श्री आचला जी ने कहा कि गोंडी भाषा के मानकीकरण हेतु पूरे देश में घूम घूम कर उनकी लिपि तैयार की गई है।आदिवासी क्षेत्र में भाषा के जानकार शिक्षकों की नियुक्ति होने पर ही शिक्षा का विकास हो सकता है। विधायक श्री नाग जी ने कहा कि इस परिचर्चा के माध्यम से आज अंतागढ़ की पावन भूमि में शिक्षा एवं संस्कृति के जानकार समाज के विद्वानों का आगमन हुआ। इन महान विभूतियों द्वारा प्राप्त सुझाव आदिवासी क्षेत्र में हमारे आगामी पीढ़ी के विकास में सहायक होगा। आरएन ध्रुव जी ने कहा कि आदिवासी बाहुल्य बस्तर के विकास के लिए चार बातें शिक्षा,स्वास्थ्य,संस्कृति, स्थानीय बोली भाषा की जानकारी महत्वपूर्ण है ।
पूरी दुनिया चाहती है की बस्तर का समुचित विकास हो, हिंसा रुके, यहां का मूल आदिवासी समाज की मुख्यधारा से जुड़े।इस दिशा में ताबड़तोड़ प्रयास भी हो रहे हैं लेकिन रिजल्ट वही का वही है। आदिवासी समाज में प्रतिभाओं की कमी नहीं है बस जरूरत है तो उन्हें तराशने की…बस्तर में आज एक ऐसे शिक्षा व्यवस्था की जरूरत है जो उनके स्थानीय बोली, भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाजों को अच्छी तरीके से जानता हो, जो आदिवासियों की भावनाओं को बखूबी परखता हो।शासन-प्रशासन ,आदिवासियों का हित चाहने वाले लोग चाहते हैं कि रातो-रात बस्तर का आदिवासी मुख्यधारा से जुड़ जाए। इन्हीं सोच के कारण बड़े-बड़े हाई एजुकेटेड दिल्ली,बम्बई, रायपुर, बड़े-बड़े कोचिंग संस्थानों से निकले हुए प्रतिभाओं को पढ़ाने लिखाने के लिए बस्तर में भेज देते हैं , या यूं कहें के आदिवासियों के ऊपर लाद देते हैं। इन प्रतिभाशाली लोगों को बस्तर के बोली ,भाषा, बस्तर के लोगों की भावनाएं समझते समझते चार- पांच साल लग जाते हैं।चार – पांच वर्षों बाद यह सभी प्रतिभाशाली बस्तर से वापस मैदानी क्षेत्र में तबादला करा लेते हैं ।बस्तर का आदिवासी अपने आप को ठगा महसूस करते है। यह सिलसिला लगातार बदस्तूर जारी है।अगर हम सही मायने में इनका विकास चाहते हैं तो हमें स्थानीय स्तर पर ही स्थानीय बोली- भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाजों को जानने वाले शिक्षकों ,डॉक्टरों, इंजीनियरों, पटवारी आदि को तैयार करना होगा।मेरा दावा है बस्तर में शिक्षा और संस्कृति के विकास का संरक्षण संवर्धन होगा और यहां हो रहे लगातार शोषण , अन्याय , अत्याचार पर रोक लगेगा।एक प्रत्यक्ष जीता जागता उदाहरण मैदानी क्षेत्र का एक व्यक्ति बस्तर में आदिवासियों के बीच पढ़ाने के लिए शिक्षक नियुक्त होकर जाता है ।उन्हें कैसे परेशानी होता है इस प्रत्यक्ष उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है। आज से 35 साल पहले धमतरी जिले का व्यक्ति का नियुक्ति बालेरास सुकमा में शिक्षक के पद पर होता है। जैसे ही वह गांव में जाता है गांव वाले उन्हें प्रथम दृष्टया भगा देते हैं।क्योंकि वह व्यक्ति न तो स्थानीय गोंडी बोली भाषा जानता है और न ही गांव के लोगों की भावनाओं को समझ सकते हैं।वह व्यक्ति हार नहीं मानता और लगातार उस गांव से संपर्क बनाए रखते हैं। स्थानीय गोंडी बोली- भाषा सीखने का प्रयास करता है। गांव के लोगों में जगह बनाने के लिए, स्थानीय बोली भाषा सीखने के लिए पांच – छै वर्ष लग जाते हैं।
जब उस शिक्षक के परिश्रम से वहां का बच्चा प्राइमरी से मिडिल स्कूल ,मिडिल स्कूल से हाई स्कूल और हाई स्कूल के बाद कुछ नौकरी में लग जाते हैं तो उस शिक्षक की भगवान की तरह पूजा होती है। लेकिन सभी लोग ऐसा सेवा भावी नहीं होते हैं। बहुत सारे लोग इसे रोजी रोटी कमाने का जरिया समझ लेते हैं।जिसके कारण बहुत सारे ऐसे प्रतिभाशाली लोग बस्तर को चारागाह के रूप में उपयोग करते हैं और दोहन करके वापस चले आते हैं। इसलिए हम बस्तर में आदिवासियों का यदि वास्तव में हित संवर्धन करना चाहते हैं, पहले की तरह शांत प्रिय , हिंसा मुक्त बस्तर चाहते हैं तो उनके बोली-भाषा ,उनके शिक्षा ,उनके स्वास्थ्य, उनके संस्कृति, रीति-रिवाजों को संरक्षण करते हुए स्थानीय युवाओं को शत-प्रतिशत रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर विकास की नई गाथा लिख सकते हैं। परिचर्चा में यह बात खुलकर आई की आदिवासी क्षेत्रों में स्थानीय बोली भाषा के जानकार लोगों को शिक्षक नियुक्त करने से ही शिक्षा एवं संस्कृति का विकास संभव है। आभार प्रदर्शन श्री विश्राम गावड़े अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज अंतागढ़ द्वारा किया गया। इस पर चर्चा में सुखदु पोटाई, सुखरंजन उसेंडी, सतीश टेकाम, सुकलाल नवगो, सोहन हिचामी ,डी एस बघेल, रूपेश ठाकुर, कृष्णा पाल राणा, अशोक औरसा, वेद प्रकाश मंडावी, कुमारी संध्या कौड़ो, मुकेश उसेंडी, चंद्र कुमार ध्रुव हीरालाल मांझी, राजाराम कोमरा, सगदु तेता ,जागेश्वर गावड़े,दशरथ उइके ,राधेलाल नुरूटी,बीरसिंह उसेंडी सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवीगण उपस्थित थे।