छत्तीसगढ़ में फेरोएलॉय लौह अयस्क उत्पादक संकट में – आईएफएपीए।

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जिवराखन लाल उसारे रायपुर

आईएफएपीए ने छत्तीसगढ़ में फेरोएलॉय लौह अयस्क उत्पादकों के लिए दर्शाई चिंता 

जल्द ठोस कदम ना उठाए तो होगा गंभीर नुकसान

 कच्चे माल के उपलब्ध ना होने – आयात के सस्ते होने तथा हाई पावर टेरिफ की वजह से इकोसिस्टम को हुआ नुकसान


रायपुर 3 मार्च इंडियन फेरोएलॉय प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन आईएफएपीए ने छत्तीसगढ़ के फेरोएलॉय उद्योग की स्थिति को लेकर चिंता जताई है – मलेशिया से फेरोएलॉय के सस्ते आयात व अन्य कारणों को लेकर उपजी इस चिंता के कारण आईएएएपीए द्वारा सरकार से निवेदन किया गया है कि वह छत्तीसगढ़ में  5500 करोड़ मूल्य के फेरोएलॉयज उद्योग की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जल्द ठोस कदम उठाएं।

उल्लेखनीय है कि सस्ते आयात की वजह से स्थानीय विकल्पों की ओर से व्यवसायियों का ध्यान हट रहा है और यह मुख्य चिंता का विषय है।
 छत्तीसगढ़ में फेरोएलॉयज निर्माताओं को जिन अन्य समस्याओं चुनौतियों का सामना करना पड़ता है उनमें –  मैग्नीज ओर की पूर्ति का लगातार ना होना — लैंड लॉक की समस्या, वैजाग, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे बंदरगाहों के समीप स्थित उद्योगों की तुलना में यहां मैंगनीज का आयात महंगा है । कोयले के दाम अधिक होना – हालांकि छत्तीसगढ़ में मौजूद अधिकांश उद्योगों के पास उनके खुद के कैपटिव पावर प्लांट, खुर्द का उर्जा स्त्रोत हैं ।
महंगा और अपर्याप्त पावर टेरिफ, केवल उन निर्माताओं को राज्य सरकार द्वारा कुछ सब्सिडी दी गई है जिनके पास कैपटिव पावर नहीं ह।


इस बारे में बात करते हुए इंडियन फेरो एलॉयज प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के चेयरमैन मनीष शारडा ने बताया कि फेयरवेल एलॉय उद्योग पिछले 5 सालों से लगातार मंदी का सामना कर रहा है द्य परिणाम स्वरूप इस उद्योग से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण निर्माताओं पर उनकी यूनिट को बंद कर देने का दबाव बन रहा है।

मलेशिया ने अपने फेरो एलॉयज मैन्युफैक्चरर्स के लिए बिजली में सब्सिडी प्रदान की है, इसके कारण मलेशिया से होने वाले मेंगनीज एलाए के आयात की बढ़ोतरी से आगे घरेलू व्यवसायियों की लाभप्रदता के और कम होने की आशंका है।
 मनीष शारडा ने कहा कि भारत फेरो एलाइ निर्माता एसोसिएशन सरकार से अपील करती है कि वे फिनिश्ड एलाय पर इंपोर्ट ड्यूटी के अधिभार के जरिए कच्चे माल के आयात पर ड्यूटी को घटाकर और कम दामों में बिजली उपलब्ध करवाकर घरेलू उद्योग के लिए भी समान स्तर पर कार्य का अवसर दें – ताकि भारत भारतीय फेरो एलॉय उद्योग भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकाबला कर सके।

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ फेरोएलॉय उद्योग तकरीबन 5500 करोड़ रुपए का टर्नओवर करता है और यह जीएसटी के रूप में सालाना करीब 1000 करोड़ रुपए राज्य सरकार को चुका रहा है। यह उद्योग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 75000 लोगों को रोजगार देता है जिसमें हर वर्ष करीब 10ः की वृद्धि होती है भारत में फेरो एलॉय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मलेशिया से आयात होता है, जहां  उत्पादन बहुत कम कीमत में होता है द्य गौर करने लायक बात यह है कि फेरोएलॉय का निर्माण करने के लिए बिजली एक प्रमुख कारक होता है और यह उत्पादन की कुल लागत का करीब 40 से 70ः होता है द्य फेरो एलॉय निर्माता के लिए अन्य देशों की तुलना में भारत में पावर टेरिफ अधिक है , कम पावर टेरिफ के साथ मलेशिया से मैग्नीज ऐलॉय के आयात से आगे जाकर घरेलू व्यवसायियों की लाभप्रदता के और कम होने की आशंका है।

 इंडियन फेरोएलॉय प्रोड्यूसर एसोसिएशन के अनुसार भारत करीब 2 पॉइंट 4 8 मिलियन टर्न मैग्नीज फेरोएलॉय उत्पन्न करता है और 100000 से भी अधिक लोगों को रोजगार देता है।
घरेलू मांग में कमी के चलते भारत करीब 60ः में मैगनीज फेरोएलॉय का उपयोग करने में सक्षम है और बचा हुआ 40ः निर्यात कर दिया जाता है , जिससे 7000 करोड रुपए की विदेशी मुद्रा की कमाई होती है।

आई ए एस ए पी ए यानी इंडियन फेरोएलॉय प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन की स्थापना 1961 में बल्क और नोबेल दोनों तरह के फेरोएलॉय के हितों के संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक सहायक इंडस्ट्री के तौर पर की गई थी ताकि वह घरेलू स्टील उद्योग की बढ़ती मांग की पूर्ति कर सकें आज आई एफ ए पी ए देश में बल और नोबेल फेरोएलॉय के मैन्युफैक्चरर्स का प्रतिनिधित्व करने वाली अपेक्स बॉडी बन गई है आज की गणना के हिसाब से सारे फेरोएलॉय उत्पादकों को मिलाकर इसके 100 सदस्य हैं जिनमें इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस इस मेल्टिंग प्रोसेस तथा नोबेल फेरोएलॉय निर्माता शामिल है जो कि एल्यूमिनोथर्मिक प्रक्रिया का उपयोग करते हैं।

इस पत्रकार वार्ता में एसोसिएशन के चेयरमैन मनीष शारडा, प्रेम खंडेलवाल, सीवी दुर्गा प्रसाद और मनोज अग्रवाल मुख्य रूप से उपस्थित रहे।

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